"स्पर्श "
"स्पर्श "
नदी के स्पर्श से
किनारों
के
तन मन
भर जाता
होगा
जरूर
एक लम्बी
सुस्कता
के बाद !
जैसे
व्याकुल
नववधू के
तन मन
भर जाता
होगा
पति के पहला
स्पर्श से
सुहाग रात में
एक लम्बी
प्रतीक्षा के बाद !!
बसन्त के
पहला
स्पर्श से पेड़ों पौधों
के
तन मन भर जाते
होंगे जरूर
एक लम्बी
पतझड़
के बाद !
जैसे
कोई सुहागन
की
तन मन में
रोमांच भर जाता
होगा
परदेश से
लौटा
अपना
पति के
पहला
स्पर्श के बाद !!
शबनम
की
ठंडी ठंडी
स्पर्श से
धरती माता की
मन में
एक अनोखा
सा प्यार
महसूस होता
होगा
जरूर !
जैसे कोई
नवजात
शिशु की
कोमल कोमल
जुबान का स्पर्श
पहली बार
महसूस की होंगी
उस की माँ
अपनी सीने में
एक लम्बी
कष्ट बाद !!
ऐसे एक स्पर्श की
जरूरत है आज
उन वृद्ध
माँ बापों को
जो कई वृद्धा आश्रम में
या कहीं
टूटी फूटी मकानों में
बचे हुए जीवन
बिता रहे है
भटकी हुई
नदी के कटते हुए
किनारों के जैसा !
क्या, दे पाएंगे
उन्हें हम वो स्पर्श
जो कभी
उन्होंने हमें
दिए थे
कड़कडाती
सर्दिओं में
अपनी सीने में
लिपटा लिपटा कर ???