सपने
सपने
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सपने बनते हैं,
जादू और कल्पना से,
जहाँ सूर्य चमकता चौगुना,
बिखेरता हुआ स्वर्ण कणों को,
हर एक चीज़ पर।
ये जगमगाती वस्तुएँ,
भर देती है असीम उल्ल्हास,
और मेरे अंदर की काल्पनिक सोच,
जी लेती है परियों वाली कहानियाँ,
कभी सिंडरेला बनकर उत्सुकता से,
अपने राजकुमार का इंतज़ार करती हुई,
कभी लिटिल रेड राइडिंग हुड बनकर,
एक रोमांचक सफ़र पर निकलती हुई,
ढूँढ़ती जंगलों में ज़िन्दगी के राज़।
जो भी किरदार वो जीती,
भरा होता है तिलस्मी भावों से,
और ये सपने बन जाते हैं,
छोटे छोटे काल्पनिक कहानियाँ,
उसकी ज़िन्दगी की।