सपने सजाना हैं
सपने सजाना हैं
वक़्त से मांग के उधार कुछ पल लाना है
थोड़ा ही सही पर वापिस कल आना है
फिर से अनजान हो के मिलें हम तुम
फिर सुहानी शामों का सफ़र लाना है
बीते हुए पलों में खोए राही पा ले
आज उन्हें फिर से तेरे दर पे लाना है
पल भर के लिए भूल के सब खो जा
वक़्त से मांग के उधार कुछ पल लाना है
अंधेरे में ढूँढता जिन सायों को
दिन के उजाले में वो शख्स लाना है
इन यादों के शहर से गुज़र कई बार हुआ
आज पुरानी इमारतों के नगर आना है
जिन गलियों में हँसता बचपन तेरा बीता
वो पुराना मौसम वापिस मुझे अब लाना है
किसी कमरे से झाँकती आरजू मेरी
उनको करके पूरी नई मंज़िल पाना है
हंसी की खिलखिलाहट से झूमता घर
फिर से रंगीन जवानी के सपने सजाना है