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Vikas Sharma

Abstract

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Vikas Sharma

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सपना

सपना

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एक बार एक आदमी का सपना पूरा हो जाता है,

चाह थी उसकी नोटों की, घर नोटों से भर जाता है,

जो-जो चाहा था उसने,वो उसको मिल जाता है,

अब तो नोटों में सोता वो,

और नोटों की थाली में खाना खाता है,


एक दिन जब श्रीमति के पास वो जाता है,

उनको भी नोट गिनने में बिजी वो पाता है,

वो जोर-जोर चिल्लाता है,

पर नोटों की दीवार को भेद नहीं पाता है,


अब तो परेशां और पागल हो जाता है,

रोज तो बेटा उसका पापा –पापा चिल्लाता आता था,

देखकर उसको उसकी आँखे खुशियों से भर जाती थी,

पर पैसे के लालच में उसने,उससे तोड़ा नाता था,


यही सोचता है अब,

पहले वो दिन भी कितने अच्छे थे,

रोज झगड़ते थे उनसे, रोज मनाते थे,

रात को मिलकर सब खाना खाते थे,

फिर मीठे –मीठे सपने में खो जाते थे,


अब तो भगवान् से यही मांगता है,

हे ! प्रभु, मुझको तो फिर पहले जैसा कर दे,

मेरे जीवन को फिर खुशियों से भर दे,

पैसे की अब चाह नहीं है,

अब मेरी खुशियाँ मुझको वापस कर दे।


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