सफर और मंजिल
सफर और मंजिल
सफर में रहना ही मेरा मकसद है
अंजाम से मैं गुजरना नहीं चाहता
एक भीड़ सी है मेरी जिंदगी
अकेला मैं चलना नहीं चाहता।
सुकून के पल की तलाश सुकून से करूँ
वो सुकून में पाना नहीं चाहता
सभी अरमान धोखे में रखते हैं हमें
एक और अरमान की अरमान दिलाकर
अब एक और अरमान मैं लेना नहीं चाहता।
ईमानदारी और कुछ नहीं
एक आईना है बस
वो आईना मैं देखना नहीं चाहता
कबीर से मेरी बात हुई
उन्होंने बताया, तू सच्चा है
बस बेईमानी इतनी कि तू मानना नहीं चाहता।
यहां आकर क़लम मेरी रुक गयी
इधर उधर जंजाल लेके घूमा हूँ
सीधी लकीर मैं खींचना नहीं चाहता
पता नहीं क्या डर है, इसे सीधी लकीरों से
लगता है खुद को आइना बनाना नहीं चाहता।