संवेदना मृत है !
संवेदना मृत है !
है डूबती नाव
मंझधारों में,
कुछ बेसहाय लाचार ज़िंदगियां,
डूबने के कगार पर,
कुछ चीखती चिल्लाती आवाजें,
मदद की गुहार पर,
किनारे पर खड़े हैं कुछ मूक दर्शक,
जो हो चुके हैं बधिर भी,
जिजीविषा जिनकी लुप्त है,
इंसानियत विलुप्त है,
संवेदना भी मृत है !
है गिर पड़ी पुल ढह कर,
सैकड़ों लोग मलबे के तले,
चीख और पुकार कर,
कुछ मौत आत्मसात कर,
करुण दृश्य बेहिसाब है,
सत्ता के गलियारों में फिर भी,
आरोप प्रत्यारोप बुलंद हैं,
वेदना सुषुप्त है,
इंसानियत विलुप्त है,
संवेदना भी मृत है !
है महामारी बुलंदी पर,
हवा मौत से भरी हुई है ,
सन्नाटे में ख़ौफ़ बुन रहा ताना-बाना,
मौत का अंबार,
लाशों का गुंबार,
कुछ जमीरें अब भी मूक हैं,
सींक रही हैं स्वार्थ की रोटियां,
संवेदना , इंसानियत सब लुप्त हैं,
पर राजनीति अभी भी अतृप्त है !