संगम
संगम
ठंडे गीले पानी के छींटे ..यूं पड़े नर्म गालों पर
मानों गुलाब की पत्ती पेओस की बूंदे छलकी हों
ये फिजा देख के हैरान है तेरी काली आंखों का नूर
भीग गए नजारे सभी देख के भीगे चेहरे का सुरूर
नजरें तुम पे ऐसी अटकी के अब हटती नहीं
दिल से याद तेरी अब मिटाने से मिटती नही
बेकरार दिल को चैन और सुकून तो नसीब हो
उठाओ पलकें अब दीदार तेरा मेरे रूबरू हो
शर्मो हया के गहने उतार के खुद को हल्का करो
बेमानी बंदिशों से अब ख्वाहिशों को आजाद करो
बहने दो भाव के झरने मिलने दो इन्हें दरिया से
ये संगम खूबसूरत हो के इसे प्यार से मिलने दो।