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दयाल शरण

Abstract

4.6  

दयाल शरण

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संभावना

संभावना

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436


कच्चे-कच्चे, कुछ टुकड़ों में

आते हैं, फिर डह जाते हैं,

लिखते-लिखते, शब्द कभी

कोई अर्थ नहीं दे पाते हैं,


फिर भी कोशिश छूटी तो,

बस मौन खड़ा रह जाएगा

मन की मन मे रह जाएगी

निर्वात बड़ा रह जाएगा।


तो, चुप क्यूँ हो, 

तुम खुद से , मुझ से,

कभी-कभी कुछ बोलो तो,

मन मे जो तांडव करते हों

भाव की गुत्थी खोलो तो,


माना युद्ध कठिन है खुद से,

पर हाथ मेरा तुम पकड़ो तो,

और यू ही चुपचाप रहे तो,

घुट-घुट कर मर जाओगे।


चलो, धरा पर गिरे सही,

पर उठो, धूल को झाड़ो तो,

माना थोड़े घाव हुए पर,

कब तक शोक मनाओगे


जीवन का संकल्प कठिन है

जतन से पांव बढाओ तो,

संतापों पर ना जीते तो,

क्या जीवन गर्त बनाओगे।


चोरी -चोरी, चुपके-चुपके,

मुझमे क्या खोजा करते हो,

दरवाजों में खींची दरारों से

जाने क्या टोहा करते हो,


जीवन मे जो कुछ भी है

वह एक धुरी से बाहर है,

पंखों को परवाज़ तो दो

वरना पिंजड़ों में रह जाओगे।


माना युद्ध कठिन है खुद से,

पर हाथ मेरा तुम पकड़ो तो,

जीवन का संकल्प कठिन है


जतन से पांव बढाओ तो,

पंखों को परवाज़ तो दो

वरना पिंजड़ों में रह जाओगे।


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