समय की चाह
समय की चाह
आ गया है वक़्त अब कुछ कर दिखाने का।
दुश्मन को सबक उसके ही घर मे सिखाने का।।
गीदड़ भी बोलने लगे जब शेर की वाणी।
फिर शेर को तो चाहिए कुछ कर दिखाने का।।
जब सरहदें पुकारती हों चीख - चीख कर।
समझो की सही वक़्त है पौरुष दिखाने का।।
दुश्मन जब अकड़ और मनमर्जी लगे करने।
बातों से नहीं शस्त्र से कुछ कर दिखाने का।।
क्या खूब कहा है किसी ने मरकर न वे मरते।
आज़ाद इरादे न जिनके कभी पीठ दिखाने का।।