समरथ।
समरथ।
तुम बिन इस सकल जगत में, अब कोई नहीं है मेरा।
छोड़ सकल माया का फेरा, बस एक भरोसा तेरा।।
समय कटत जैसे मोम जरत, थर-थर कपत तन मेरा।
जप- तप पूजा न जानी, सुमिरन किया न कभी तेरा।।
देख दुनिया की चकाचौंध से, कलुषित हुआ मन मेरा।
छोड़ गए सब संगी-साथी, दिखे न कोई अब मेरा।।
मन की चाल समझ न पाया, चित्त चंचल हुआ अब मेरा।
विवेक शून्य बुद्धि हुई मेरी, लज्जित हुआ घनेरा।।
समाधान कैसे अब होगा, ढूंढत अब रैन बसेरा।
तुम कृपालु मानुष तन दीन्हा, कालचक्र ने घेरा।।
थकित हुआ सब तीर्थ मंझाकर, हुआ न मन का फेरा।
सेवा-भक्ति का वर मांगू ,उद्धार करो अब मेरा।।
तुम सम समरथ और न कोई, शरणागत हूं अब तेरा।
लाज रखो अब तुम "नीरज" की, सब कुछ है अब तेरा।।