सम्बन्ध
सम्बन्ध
सम्बन्ध हृदय का भाव है वह ,
जहां भिन्न भिन्न जन होते एक।
मिलकर सुख दुख को सहते ,
जीने-मरने को भी तत्पर रहते ।।
स्वार्थ साधने को ही अब तो ,
सम्बन्ध बनाते जन जग में ।
आ जाती कटुता सम्बन्धों में ,
हो तालमेल ना जीवन में ।।
पुत्री के घर को बसाने में ,
जब कर्जदार पितु हो जाता ।
लोभी फिर भी सन्तुष्ट न हो ,
तो यह दुख ना देखा जाता ।।
स्वार्थ से अछूता कोई कब ,
पर पर अनिष्ट का ध्यान रहे ।
दुर्योधन अरु रावण हुए हेय ,
पर गये न धन वैभव को गहे ।।
सबको लख अपने ही समान,
सम्बन्ध बनाए दृढ़ रखिए ।
कष्टों में काम आते अपने ,
सम्बन्ध न तार तार करिए ।।