समाज
समाज
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बौना होने लगा है
दिल और दिमाग
इंसान का।
कि समाज के
ओछेपन के
विपरीत कोई
सोचता नहीं।
बिता देने को घड़ियां
ख़ुशी और अमन से
जो चाहे
कि समाज उसे भी
चैन से
एक पल जीने देता नहीं।