सजावट
सजावट
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मैंने आज कई रंगों का,
एक ख़्वाब बुना था
किसी ने सलीके से सजा कर
कुछ रंग हटा दिए।
क्या तुमने देखा है उन रंगों को?
जो अभी- अभी इंद्रधनुष का
हाथ पकड़ कर,
नीली नदी में गोते लगा रहे थे?
गीली हरी घास की
खुशबू ने भी,
चुपके से उन रंगों को
कहीं छिपा लिया है
क्या तुमने देखा था?
नर्म दूब पर रुई के
सफेद गोले में लिपट कर
कुलांचे भरते उन रंगों की
मासूमियत को ?
मेरा ख़्वाब मुझ जैसा ही था
अनगढ़- खामोश- सरल-
मगर,
चंचल हवा सा।
उसे करीने से सजा तो दिया,
लेकिन अब उसकी आँखें
भी मुझ जैसी ही हो गई हैं,
बनावटी चमक से भरी
खिलखिलाती हुई।