सिर्फ़ वो मोहब्बत
सिर्फ़ वो मोहब्बत
अपनी मोहब्बत को
अकेले ही जीती रही
ख़ुद ही मुस्कुराती
ख़ुद ही आँसू पीती रही
क्या पता था
सिर्फ़ दर्द ही रह जाएगा
खोल के अपने ज़ख़्मों को
ख़ुद ही सीती रही
इतनी भी मोहब्बत करेगा कोई
यक़ीं हुआ भी तो क्या
एक अहसास को काँधे पे ढोती रही
वो जो ज़िंदगी बन गया
और ले गया मेरा सबकुछ
बिछा के झोली उसी इंतज़ार में
हर एक राह फ़ूलों से संजोती रही
क्या ग़िला करती क़िस्मत से
वो तो अच्छी ही थी
सलीक़ा आया ना मुझे भूलने का
होंठों पे धरे मुस्कान कोनों में रोती रही
पहुँची ही नहीं मेरी कोई गुहार उस तक
एक बार देखता जो पलट के
तोड़ता रहा वो धागे
मैं फिर भी बिन थके उन्हें जोड़ती रही
मेरी ही तो थी सिर्फ़ वो मोहब्बत
वो पाक और मैं नापाक
वो भूल गया और मुझे होती रही।