सिर्फ़ तुम
सिर्फ़ तुम
लब्ज जब भी खुलते है,
नाम तेरा ही लेते हैं
आंखें बन्द होते ही
हर ख्वाब तेरे ही होते हैं
कभी सोच, कभी कल्पना में
हम पास तेरे ही होते हैं
तेरे दूर जाते ही जैसे हम
टुकड़े -टुकड़े होते हैं
तेरी बातों और शिकायतों से
मुकरते नहीं हम
पर ना मानने पर तेरे हम,
जार -जार रोते हैं
जार- जार रोते हैं.....