सिर्फ मैं
सिर्फ मैं
कद में छोटा, पर मैं अधिक हूँ,
मन मानी राहों का पथिक हूँ,
अनजाने का मुझे नहीं है डर,
वीराने में भी चलना पड़े अगर।
स्थिरता से परिचय,
एक ढृढ़ निस्चय,
कि मैं बहाव में नहीं आऊंगा,
और कभी तिनका नहीं कहलाऊंगा।
जीवन गोते खायेगा,
पर सतह से ऊपर आयेगा,
समय का पराधीन निर्णय,
रहेगा अमर और निर्भय।
कशिश से ऊपर उठकर,
अमिट कोशिश कहलाऊंगा,
क्या तुम्हारा दिया देह त्याग कर,
तुम्ही में विलीन हो पाउँगा ?
यौवन के सीमित मंच पर,
लहू कि गर्मी का स्तर,
निशब्द गिरता जायेगा,
और नयी अनुभूति लाएगा।
तब हद कि रेखाएं मिट जाएँगी,
और सिर्फ कद से पहचाना जाउंगा,
अस्तित्व कि इस खोज का,
परिणय देख वापस आउंगा।
