सिमरिया घाट
सिमरिया घाट
चलो चलते हैं, सिमरिया घाट
जहाँ दिनकर की अस्थियां
जली होंगी तिल तिल कर
डोमवा
जनवाद का चीवर ओढ़कर
सिसक रहा है, आज भी
हरिजन नहीं कहूँगी उसे
जिसे छूने भर से
मलिन गंगा में स्नान करके
पवित्र हो जाते हैं लोग...
चलो चलते हैं, सिमरिया घाट
जिसके किनारे, मृत पशुओं की खाल से
बना एक बड़ा उद्योग
पनप रहा है आज भी
जिसे छूने भर से लोग
हो जाते हैं अपवित्र
चमड़ा नहीं कहूँगी उसे
जिससे निर्मित थैले को लोग
लटकाते हैं अपनी गर्दन में
और शान के प्रतीक
समझे जाने वाले
'बाटा' जूते को
लोग करते हैं धारण बड़े ही शौक से...
चलो चलते हैं 'बरौनी' की डोम बस्ती में
जहाँ "डोमवा"
आश्विन मास से ही बुनने लगते हैं
अपनी अद्भुत कलाकृतियों को
'सूप' और 'डगरा' के रूप में
"डोमवा"
तुम्हें हरिजन नहीं कहूँगी
कि तुम्हें छूते ही
लोग हो जाते हैं 'अपवित्र'
कि उसी सूप में देते हैं "अर्घ्य”
सूर्य भगवान को...
चलो चलते हैं
पवित्र नगरी सिमरिया घाट
दिनकर नगरी सिमरिया घाट ...