सिलसिला
सिलसिला


वही रोज़-रोज़ का सिलसिला
कभी मैं मिली कभी तू मिला!
दूर किया सारा शिकवा और गिला,
कभी मैं मिली कभी तू मिला!
खुशी से भरकर मैं भी झूमती,
हंसी होंठों पे रख तू भी झूमता!
मेरी उमंगें भी आसमान पर थी,
तू भी उमंगों से भरकर रहता!
इसी तरह हंसते खिलखिलाते
हमने जीवन के पच्चीस बसंत
संग संग रहकर हैं गुज़ारे!
चलता रहे आगे भी वही रोज़
रोज़ का यूं ही हंसी सिलसिला!
अगले पच्चीस वर्ष भी हम
उमंगों से भरकर गुजारे
अपना यह जीवन का सिलसिला!!