*****सिलसिला****
*****सिलसिला****
अश्क़ पलकों पर हो ठहरें चाहता कोई नहीं
सिलसिला जज़्बातों का है आसरा कोई नहीं।
मन में सिमटे हुए कुछ कहते अश्क़ रुक जाते हैं
फिर भी हालातों से लड़कर हारता कोई नहीं।
लोग हसरत में खुशियों की कहाँ मिट पाते हैं
खाके ठोकर गर्दिशों में झाँकता कोई नहीं।
साये कुछ आकर बदल ही गये गली के चाँद को
सब की सब आँखें खुली हैं जागता कोई नहीं।
कुछ फ़रिश्ते आए मौसम को बदलने के लिए
साँप आस्तीनों में "नीतू" पालता कोई नहीं।