सिगरेट की राख
सिगरेट की राख
अपनी जिंदगी को धुएँ में मत उड़ाओ,
धुएँ में उड़ाना है तो सिगरेट और तंबाकू को उडा़ दो।
फिर ना तुम जलोगे ना तुम्हारा परिवार जलेगा,
सिगरेट को नशे का पुल मत बनाओ।
पुल के दूसरे छोर तक सब खाक न हो जाए,
जिसमें अपनी दुनिया ही उजड़ती हुई नजर आएगी।
सिगरेट पीकर हम अपने ही अक्स को जला रहे हैं,
जब तक सिगरेट नहीं पी थी जरा मुड़ के तो देखो,
कितनी रंगीन दुनिया थी।
लेकिन आज अपनी ही दुनिया अपने हाथों से हम उजाड़ रहे हैं,
ज़िन्दगी बिल्कुल इस सिगरेट की तरह होती है।
बाकी बचती है तो बस कुछ यादें औ' कुछ जले हुए पल,
ज़िन्दगी धीरे धीरे सुलगती हुई खत्म हो जाएगी।
बस रह जाएगा तो सिर्फ थोड़ी देर तक धुआँ,
और हमारे शरीर रूपी सिगरेट की राख।