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Shailaja Bhattad

Abstract

4.0  

Shailaja Bhattad

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शून्य

शून्य

1 min
160


शून्य का शून्य में आलाप है

न किसी को खोने का प्रलाप है।

न किसी को पाने में मुस्कान है

शून्य ही आगाज है

शून्य ही अंजाम है।


है नहीं कोई व्यथा की कथा

एक ही अवस्था में विद्यमान है

वक्त अभी सख्त है।


देनी इसे शिकस्त है

विचित्र सा व्यवधान है।

आदमी को आदमी का नहीं साथ है

गश्त का भी दिख रहा परिहास है।


शून्य से विचार है

शून्य सा आचार है।

शून्य से ही दिख रहा

सबका सरोकार है।


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