शर्मिंदगी
शर्मिंदगी
उस दिन मुझ पर कितनी लानत बरसी होगी
जिस दिन तेरी आंख से आंसू निकले थे
जिस दिन तेरे माथे पे बल आए थे
जिस दिन अपने हाथ की मेहंदी
रचने से पहले ही तूने धो दी थी
जिस दिन तू ने घर की चीज़ें
ग़ुस्से से बिखरा दीं थीं
जिस दिन अपने सारे ज़ेवर
नोच के तूने फैंके थे
जिस दिन तेरे होंटों पे बस आहें थीं
जिस दिन मैंने
तेरा नाज़ुक दिल तोड़ा था
जिस दिन तेरा हाथ भी छोड़ा , साथ भी छोड़ा
जिस दिन तूने दुनिया से मुंह मोड़ लिया
और पंखे से झूल गई....
उस दिन मुझ पर कितनी लानत बरसी होगी
उस दिन मुझ पर कितनी लानत बरसी होगी।