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Awadhesh Singh

Others

5.0  

Awadhesh Singh

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श्रद्धाजलि और मेरी चाह।

श्रद्धाजलि और मेरी चाह।

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सूर कबीर तुलसी बनूँ मैं

और बनूँ मैं मीरा

बनूँ कविता मञ्जरी,

बनूँ मैं कामायानी।।

प्रेम के आश्रय में गुंजू

मैं गुँजन

चमक चमक कर चाहूँ

मैं साहित्य में हीरा


प्रसाद बनूँ निराला बनु

और बनूँ पंत की वीणा

गीत गोविंद के गाऊँ मैं

जयदेव के सुबह शाम

तुलसी की रामायण बनूँ मैं

गाऊँ बिनयपद् सूरश्याम


मैथली की उर्मिला बनूँ मैं।

लक्ष्मण का सा धैर्य धरूं मैं

बिहारी जी के प्रेमी दोहे

मन को हर पल मेरे सोहे

महादेवी की विरह ज्वाला हो

वही जो मेरी बस राहे हो

सूर कबीर तुलसी बनूँ मैं

और बनूँ मैं मीरा।।


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