शराब
शराब
पा लेता हूँ जहां को तेरी चौखट पर लेकिन
तेरी एक बूंद से मेरी प्यास नहीं बुझती
भुला सकता हूँ मैं अपना वजूद भी तेरी खातिर पर
तुझसे एक पल की दूरी मुझसे बर्दाश्त नहीं होती
भूल जाता हूँ मैं ग़म अपने होंठों से लगाकर तुझे
जब तक छू ना लूँ तुझे मेरी रफ्तार नहीं बढ़ती
बड़ा सुकून मिलता है नसों में तेरे घुलने से
किसी भी साज़ में ऐसी कोई बात नहीं होती
बड़ा हल्का सा लगता है मुझे भारी सा दिल मेरा
जब तू हाथ में होती है उलझने साथ नहीं होती
ना मदहोश होता हूँ कभी तेरे आ जाने से
चले जाने से तेरे तबीयत मेरी रास नहीं होती
बड़ी बदनाम है तू उन शरीफों के मोहल्ले में
तेरे ना होने से जिनकी महफिल खास नहीं होती
जो मरते है तुझपर बस वही समझते है
बे परवाह मुसाफिर की मंजिल कभी पास नहीं होती।