शंखनाद हो जाए
शंखनाद हो जाए
संसद में जनहित के फैसले अगर निर्विवाद हो जाए।
जरा सोचिए न चैनलों के चर्चे नीरस बेस्वाद हो जाए।
भोली जनता जब कदर अपने वोट का जानेगी,
बहरूपिए के चेहरे देखना , पल में ही मांद हो जाए।
जातियों में बाँट के मानवता को ,कर रहा वो शर्मसार,
दिलों को जीतना है तो , सभी का संवाद हो जाए।
स्वार्थ से कैसे ऊपर उठेगी यह घिनौनी राजनीति?
इस मसले का कोई नायाब़ तरीका इज़ाद हो जाए।
नज़र उठाते काँप जाएगा तब मुल्क का हर दुश्मन
दिलों में भगत सा, देशप्रेम का जो उन्माद हो जाए।
अब जागो युवा बहादुरों, विकल हुई माँ भारती,
दीप हो बदलाव सुनिश्चित क्रांति का शंखनाद हो जाए।