शिकवा
शिकवा
गलत ना होने का दावा किया तुमने,
मोहब्बत का ना कायदा किया तुमने
जो दुनिया की नजरों से बचाता रहा,
उसका क्या बदला दिया तुमने।
जान लेता था था सांसों से हाल मेरा
कहाँ वो हुनर गंवा दिया तुमने।
शाम होते बिखर जाता था गोद में में,
कहां कांटों पर सुला दिया तुमने ।
सुकून था अकेली जिंदगी में,
क्या इश्क में फंसा दिया तुमने।