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Kusum Trivedi

Abstract

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Kusum Trivedi

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शीर्षक- काली रात

शीर्षक- काली रात

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काली काली रात में काला कुत्ता रोए

काली आँखे कजरारी अश्रु मोती संजोए

काला कलूटा दिल मेरा दहल सा जाय

डर डर कर मैं उठ जाऊँ मन बहुत घबराए।


प्राण प्यारे बसे हुए हैं कोसों-कोसों दूर

मिलन बना दुश्वार है मार्ग हुए हैं क्रूर

वाहन की आवन जावन होती नहीं अब-

महामारी वायरस भी बने हुए हैं मगरूर।


बैलगाड़ी की सवारी होती थी बड़ी प्यारी

हर्ष शोक में साथ दे निभा लेती रिश्तेदारी

ऊँट घोड़े सब सफर में काम बहुत आते-

यात्री गण सवार बन निकलते राह धारी।


आज कबूतर कौऐ हमको याद बहुत आते

गगन में उड़ कर वो संदेश हमारे लाते

चिठ्ठी पत्री का व्यवहार इनसे ही हो जाता-

थोड़े दाने पाकर ये खुश खुशहाल हो जाते।



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