शीर्षक-होली है
शीर्षक-होली है
रंगा है हर नदियों का कूल
बरसती है हर रंग की धूल
हृदय में छाया है मधुमास,
खिले हर होंठों पे हैं फूल।।
कौमुदी छाई मंजुल आज
तितलियों का खुलता है राज
भृंग करता है सुन्दर गान,
ये पतझड़ पहना अभिरुप ताज।।
तरल सागर लहराता शान्त
सरल आशा से शोभित कान्त
द्वेष का त्यागो हर परिधान
शास्त्र कहता है ये सिद्धांत।।
लिए भांग का गोला आज
सखे पर्दा वह खोला आज
कुमुदिनी का मुख मण्डल देख
कुमुद का यह मन डोला आज।।
उड़ाओ प्रेम भरा रंग लाल
नहीं बच पाए कोई गाल
रंगा हो कुर्ता चोली भाल
चले कटि जो मतवाली चाल।।
मनाओ ये पावन होली
नयन की चले मात्र गोली
कपोलों पर हाथों की ढाल
रक्त न, बरसे रंगोली।।
विश्व का यह शीतल है खेल
नहीं अब हो हिय कोई जेल
प्रेम से चले प्रेम की रेल
हो चाहे जितनी ठेलम ठेल।।