शौक
शौक
शौक के खातिर मनुज इस जग में हैं व्यवहार करता।
जो भी उसके मन को भाता उसको पाने को मचलता।
शौक में नहीं शोक होता शाॅक औरों को है लगता।
चाहे टूटे शौक में तन शौक को नहि नर है तजता।।१।।
शौक भी बहु भाँति होते अपना सिक्का जो जमाते।
शौक पूरा करने को नर बहुत सारा धन कमाते।
डूब कर कोई इसी में जिंदगी हैं निज गँवाते।
खोखला जीवन बिता कर शौक अपना कुछ जताते।।२।।
शौक करना हो तुम्हें गर कर्म से निज नेह कर लो।
माँ-पिता की सेवा करके आशीषों से झोली भर लो।
न्याय-नय में नित व्यसन हो अन्न शुभ का ही अशन हो।
स्वप्न के प्रिय पंख धरकर उड़ने को ऊँचा गगन हो।।