शौक लिखने का
शौक लिखने का




लिखने का कहाँ शौक था
हवा में उड़ते-फिरते थे
दुनिया की कहाँ फ़िक्र थी
अपनी धुन मे जीते थे
दिन रात की खबर कहाँ
बस यूँ ही तारे गिनते थे
चाँद देख मुसकाते थे
किस्मत बदलना चाहते थे
बहते समय और पानी को
मुट्ठी मे पकड़ना चाहते थे
लेकिन वक्त ने करवट मारी है
हर सपना अब टूटा है
सब कुछ हाथो से फिसला है
हकीकत सामने आई है
बस मेहनत ही सच्चाई है
अब दिमाग ठिकाने आया है
और दर्द पन्नों पे उतरा है
बस एक समय ही अपना है
तभी तो आज
लिखने का शौक उमड़ा है।।