शायरी की तरफ
शायरी की तरफ
बढ़ चुके थे कदम खुदकुशी की तरफ
ले चली प्यास मुझको नदी की तरफ,
रास्ते दोस्ती के कठिन तो न थे
पांव उसके बढ़े दुश्मनी की तरफ,
तीरगी की कसम कौन देकर गया
उठ सकी ना नजर चांदनी की तरफ,
थाम हाथों को मेरे ये धोखा दिया
ले चली जिंदगी मुफलिसी की तरफ,
ढूंढती मैं रही घर तेरा शहर में
रास्ते बंद थे रोशनी की तरफ,
अब न कोई गिला ना शिकायत मुझे
देखती क्या भला अजनबी की तरफ,
दर्द ' ध्वनि ' को इतना दिया शुक्रिया
लौट आए कदम शायरी की तरफ।