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Anil Jaswal

Others

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Anil Jaswal

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शायद साहित्य अच्छा रहता।

शायद साहित्य अच्छा रहता।

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मैंने दसवीं कक्षा पास की,

आखिर सवाल उठा,

आगे कहां,

स्थानीय स्तर पर प्लस टू नहीं था,

कुछ ने सुझाया,

बाहर चले जाओ,

और छात्रवास में रहो,

कुछ प्रधानाचार्य को पत्र भी लिखे,

जबाव आया,

तुरंत आ जाओ,

लेकिन पिताजी का हाथ तंग,

बाकि बड़े दो भी कर रहे थे पढ़ाई,

बहुत से लोगों से,

सलाह मशविरा हुआ,

आखिर निर्णय ये हुआ,

स्थानीय कालेज में लिया जाए दाखिला।


अब मुद्दा ये,

कौन से विषय लिए जाएं,

उसपर भी काफी वादविवाद,

आखिर निर्णय हुआ,

जनाब इंजीनियरिंग करेंगे,

और मैथ्स, फिजीक्स, कैमीस्टरी रखेंगे।


कुछ साथ वाले,

मुझसे अधिक समझदार मित्र,

साहित्य पढ़ने लगे,

कालेज की हर गतिविधि में हिस्सा लेने लगे,

और मज़े करने लगे,

बहुत सी लड़कीयों से भी,

गठबंधन करने लगे।


एक मैं अव्वल बेवकूफ,

सुबह आ जाता,

एक लैब से दूसरी लैब,

एक घंटी के बाद दूसरी घंटी,

खाने का भी समय नहीं,

गप्पे हांकने का भी ध्यान नहीं,

शाम को साढ़े तीन तक लगा रहता,

जब जाता,

तो कालेज के चपरासी को,

कमरे बंद करते हुए पाता,

दोस्तों से भी नहीं मिल पाता।


लेकिन फिर भी खुश था,

दिमाग में विज्ञानिक बनने का,

जनून था,

लेकिन शायद नसीब को,

ये भी नहीं मंजूर था,

कहीं पर भी,

इंजीनियरिंग कालेज में दाखिला नहीं हुआ,

और मैं हार कर,

हर काम से रह गया।


अब सोचता,

शायद अपनी दोस्ती,

थोड़ी और निभाता,

और साहित्य में जाता,

जिंदगी के मज़े लूटता,

रोज शाम को महफ़िल सजाता,

कोई मारधाड़ नहीं देखता,

और अपनी नैया,

किसी किनारे लगाता।


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