सदमार्ग
सदमार्ग
जो देश के खातिर जीते हैं और देश के खातिर मर मिटते हैं।
देखा जाए तो असली मायने में इंसानियत इसी को कहते हैं।।
जो खुद को भूखा रखकर भी, दूसरों का पेट भरते हैं।
इंसान नहीं वह फरिश्ता है, जो दीनों पर रहम करते हैं।।
जो अपनी इज्जत की परवाह ना कर, दूसरों की इज्जत करते हैं।
देख पराये नर-नारी को भी, मात-पिता तुल्य समझते हैं।।
स्वर्ग- नर्क की चिंता ना कर, कर्म को ही पूजा समझते हैं।
वह नर नहीं नारायण हैं, जो सब में प्रभु को देखते हैं।।
समाज में यदि ऐसे इंसान हो, जो सब से प्रेम करते हैं।
प्रेममयी यह संसार बनेगा,जो मजहब को समझते हैं।।
जाति- पाति का न बंधन कोई,. सबको गले लगाते हैं।
परमार्थ पथ का वही भागी बनता, जो गैरों के दु:ख में रोते हैं।।
"सदमार्ग" पर वो चलना सिरवलाते, पल भर में कृपा करते हैं।
" नीरज" तू भी यही मार्ग अपनाले ,जहॉं मोक्ष का द्वार खुलता हैं।।