सबसे खुशी के पल
सबसे खुशी के पल
जब मैं छोटा था,
तो परिवार में,
सबका लाडला था,
कोई डांट नहीं,
डपट नहीं,
इसलिए जिद्दी था।
मेरी बहन,
मुझसे बड़ी थी,
बेचारी काम में लगी रहती थी,
साथ साथ पढ़ाई भी करती थी,
और कलास में अव्वल रहती थी,
हमारी तो बाउंड्री लगी रहती थी,
सामने तो मैं,
उसकी खूब तारीफ करता था,
क्योंकि पूरा का पूरा मुहल्ला,
उसके नाम की सौगंध खाता था,
ये लड़की,
कभी ग़लत नहीं होती,
इसलिए आलोचना से,
थोड़ा डरता था,
परंतु भगवान के आगे,
मन में,
ये प्रार्थना अवश्य करता था,
हे भगवान! हमको भी दो वरदान,
एक बार,
इस अजातशत्रु से,
आगे निकल जाऊं,
फिर पिताजी भी खुश,
और मां भी खुश,
ऐसा बदला लूं,
जो जो मेरे टेस्ट इसने घर में बताए,
मेरे कान खिंचवाए,
सारे अरमान पूरे कर लूं।
हे भगवान! मुझे लगता है,
तू लड़कीयों की,
अधिक सुनता है,
मैंने सुना है,
जब लक्ष्मी जी और पार्वती जी बोल देती,
तो शिव भोले और विष्णु जी,
तुरंत सहमति की गर्दन हिला देते।
लेकिन भगवान,
वस एक बार इसको नीचे लगा दे,
ये दो बार सुबह शाम पूजा करती,
मैं हर पहर,
तेरी पूजा करूं।