सब जज्बात सुनाता हूँ
सब जज्बात सुनाता हूँ
बहुत हुई कविताएँ ग़ज़लें,
नया कुछ, आज सुनाता हूँ,
आज चलो तुम को अपने,
मैं सब जज्बात सुनाता हूँ ।।
कुछ बातें जो बस दिल में रहीं,
कुछ जो कहने को शब्द नहीं,
कुछ जिन को कह कर पछताया,
कुछ जो उनके मन ना भाया,
ऐसी जाने कितनी मन गांठें,
सब तुम से मिल सुलझाता हूँ,
आज चलो तुम को अपने,
मैं सब जज्बात सुनाता हूँ ।।
कुछ आंखों के कोने तक आयीं,
बन अश्रु ढुलक ना वो पायीं,
कुछ नोंक कलम की रक्खी थी,
काग़ज पर न वो उतर पायीं,
कुछ दुख उनके सुन सूख गयीं,
कुछ वसंत देख अति इतरायीं,
कुछ को रख तकिये के नीचे,
मैं अब भी साथ सुलाता हूँ,
आज चलो तुम को अपने,
मैं सब जज्बात सुनाता हूँ ।।
बचपन की वो सारी नादानी,
जाने दिल ने क्या क्या ठानी,
कुछ मन मसोस कर मानी थी,
कितनों में की थी आनाकानी,
पंख लगे जब यौवन के इस मन,
इच्छाएं कितनी उपजी अंजानी,
बचपन से यौवन के सफर के,
बक्से मैं सब खोल दिखाता हूँ,
आज चलो तुम को अपने,
मैं सब जज्बात सुनाता हूँ ।।
जब नयन थाल थे अश्रु भरे,
मुख पर स्मित फिर भी थे धरे,
दिल कितना चाहे की फूट पड़ूं,
पर वाणी के झींगुर थे जैसे मरे,
कितना कुछ भीतर सींच रखा,
ना बाहर ये पादप दिखलाता हूँ,
कोलाहल भीतर और सम बाहर,
कैसे मैं ये दुहरे भाव निभाता हूँ,
आज चलो तुम को अपने,
मैं सब जज्बात सुनाता हूँ ।।
मन एक पिटारा यादों का
कुछ लूटे और टूटे वादों का
वो पाती जो मैं ना लिख पाया
उन मेरे कमज़ोर इरादों का
वो राह जो मेरी हो न सकी
कब तक उन राहों की राह तकी
ऐसे ही सफर न जाने कितने
मैं अब साथ तुम्हें ले जाता हूँ
आज चलो तुम को अपने
मैं सब जज्बात सुनाता हूँ ।।