सावन
सावन
घटा क्या घिरी, सपने मचलने लगे ,
अरमानों के पंख लिए मन मयूर झूमे।
मदहोश हो जिया नभ को चुमे,
कब आओगे प्रीतम, नैना पथ निहारे।
यादों में तुम्हें समेटे मन ये गुनगुनाए,
मनमौजी पवन भी संदेशा ना लाए।
सावन की बूँदें भी आग लगाए ,
बादलों में छिप -छिप चाँद मुस्कुराए।
हाले दिल अब कैसे छिपाए ,
ये मन कुछ समझ नहीं पाए।