सावन का बादल
सावन का बादल
मेरी आंखों के काजल सा मदिर सावन का बादल,
मस्ताना सा उड़ता है, आवारा छिपता, दिखता है !
धुंधले कांच पे जमी धुंध सा, यादों को लिखता है
कलियों सा हँसता है, कभी मौसम सा रचता है।
बारिश की बूंदो बूंदो को, अपनी मुट्ठी में कसता है
मेरी सांसों के बिस्तर पर, एक खुशबू सा बसता है।
वो सावन का बादल मेरी मृगतृष्णा को जीता है,
मेरे नयनों की भाषा की, कई चिट्ठियां लिखता है !
रातों की कोरी चादर पर, झुनझुन नूपूर सा बजता है
मन मंदिर के आंगन पर, भोले बचपन सा खिलता है।
कनक थाल में चांद लिये, मेरे अहसासों को बुनता है
मेरी भीगी भीगी जुल्फों में, क्यूं मादक बन हँसता है।
वो सावन का बादल ख्वाहिशों का आचमन करता है,
मेरे सपनों संग अठखेलियां और अभिसार करता है !
मेरे लफ्जों की बंदिश में, सुर रागों सा सजता है
मुझको हरपल सुनने गुनने की, फुरसत में रहता है।
ख्यालों की पोटली से मेरी, अलफाजों को चुनता है
पुतली पुतली आंख मिचोली, मेरी नींदों में जगता है।
वो सावन का बादल कभी, मेरे अधरों पे मचलता है,
मेरी मुस्कान सजा, दिल सावन के बादल सा जीता है !