साहित्य में एक रोमांच
साहित्य में एक रोमांच
थोड़ा सा रोमांच
है अभी अस्तित्व में
कहते भी हैं लोग
यह अभी अशेष है।
थोड़ा सा रोमांच
किसी स्त्री के पास होने की तरह
एक चर्चित विषय सेक्स को
छोड़कर,स्त्री के पास होना
डूब जाना उसके प्रेम में
बातें करना,करते ही रहना
जहाँ भी हो
जैसे भी हो
और अचानक एक दिन
वो प्रश्न कर बैठे
तुम मुझे जानते ही कितना हो?
सदियों से पास रहते रहते,
अनगिन अविभाज्य सन्दर्भों के बीच
तुम मुझे जानते ही कितना हो।
थोड़ा सा रोमांच है
अभी अस्तित्व में
इस प्रश्न के साथ कि
तुम मुझे जानते ही कितना हो
के साथ एक और प्रश्न
तुम्हारा है ही क्या यहाँ।
मैं तो प्रकृति हूँ
जल,हवा,आकाश,पृथ्वी भी
और मैं लगभग चीखते हुये कहूँ,
जानता हूँ ,जानता हूँ
लेकिन तुमने इसे कितना बिगाड़ रखा है
शायद जितना सम्भव था
और तुम समझती क्या हो
अपने आप को,पुरूष को
जो मांगती रहती हो
बराबरी का अधिकार
नारों से,कविताओं से
कब से कब तक.....।
थोड़ा सा रोमांच है अभी अस्तित्व में
जैसे कोई दरवाजा
खुलने से पहले
दिखता है रोमांच की तरह।