सादगी का फूल
सादगी का फूल
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बेकली दिल की दिलों में ही रहे अच्छा ।
दर्द दिल का भी न कोई भी सुने अच्छा ।।
गर शहर ही फूक दे वो रौशनी क्या फिर ;
या खुदा फिर तो अँधेरा ही मिले अच्छा ।
मुफलिसी के दिन गये तो भूल आये हम ;
सादगी का फूल जितना ही खिले अच्छा ।
मौत के आगोश में कब काम आया कुछ ;
इसलिए जो भी मिले जैसा मिलेे अच्छा ।
हुश्न दौलत और सो'हरत कब हुए किसके ;
मिल गये तो मिल गये जो खो गये अच्छा ।