रूठी सी जिंदगी :
रूठी सी जिंदगी :
जिंदगी तू क्यों आज रूठ गई
सिसकियां ले रहा हर शख्स
कब्रगाह बन रहा सारा शहर
सांसों की अर्जी लगी तेरे दर पर
और तू वफा का दामन छोड़ चली
जिंदगी तू क्यों आज रूठ गई
बिखरते बिलखते तड़पतोऺ का मंजर जहां
ख्वाब टूट रहे अपने छूट रहे वहां
ये कैसी घड़ी है आ गई
तू क्यों इतनी मजबूर हो गई
बिन साथ निभाए तू संग छोड़ चली
जिंदगी तू क्यों आज रूठ गई
जिंदगी से इश्क था हमें
तू क्यों अब बेवफा हो गई
अच्छे बुरे जैसे थे हम
तेरे सच्चे बंदे थे हम
तू फिर खुशियों की सौगात ला जिंदगी
अपनी रहमत फिर बरसा जा जिंदगी
हमसे अब ना मुंह मोड़ जिंदगी
हम सब को अब ना छोड़ जिंदगी
तू ना ऐसे अब रूठ जिंदगी !