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Bhawna Vishal

Abstract

5.0  

Bhawna Vishal

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रूठा हुआ सा फाग

रूठा हुआ सा फाग

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 गुलालों की इन उथली परतों के तले

मन की गहनतम सतहों पर

व्याप्त इक वैराग है

रूठा हुआ सा फाग है


रस-रंग के इस पर्व में

भीतर है कुछ जिसको कभी

छूता नहीं रंग-राग है

रूठा हुआ सा फाग है


रिमझिम अबीरों में निरंतर

सांस भर एक प्यास है

कुछ राख है,कुछ आग है

रूठा हुआ सा फाग है

 


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