Tanu Shree

Abstract

3.4  

Tanu Shree

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रूहे - ए - ग़ज़ल

रूहे - ए - ग़ज़ल

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क्या बयाँ करू ख़ुद को जब शायर ने बयाँ कर डाला है ।

क्या सितम करूँ तुझ पर जब इश्क़ का राग रचा डाला है।

इश्क़ मोहब्बत रास ना आया मुझे

लेकिन तूने मेरे ईमान का कतल-ऐ- आमकर डाला है ।

क्या बया करू खुद को जब शायर ने खुद को महबूब बना डाला है।

बेरंग से थे मेरे अल्फाज़ तूने मेरे अल्फाज़ को रंगीन कर डाला है ।

क्या बया करूँ खुद को तूने रूह- ए - ग़ज़ल को महफ़िल बना डाला है।

  


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