रूहे - ए - ग़ज़ल
रूहे - ए - ग़ज़ल
क्या बयाँ करू ख़ुद को जब शायर ने बयाँ कर डाला है ।
क्या सितम करूँ तुझ पर जब इश्क़ का राग रचा डाला है।
इश्क़ मोहब्बत रास ना आया मुझे
लेकिन तूने मेरे ईमान का कतल-ऐ- आमकर डाला है ।
क्या बया करू खुद को जब शायर ने खुद को महबूब बना डाला है।
बेरंग से थे मेरे अल्फाज़ तूने मेरे अल्फाज़ को रंगीन कर डाला है ।
क्या बया करूँ खुद को तूने रूह- ए - ग़ज़ल को महफ़िल बना डाला है।