रूहानी प्रेम
रूहानी प्रेम
प्रेम जब
बोया जाता है
अरसों की कच्ची जमीनों पर
इंतजार के उमस भरे
मॉनसून से गुजर कर
प्रेम जब सर्द रातों में
चहलकदमियों में
तपा करता है
छतों पर
इक झलक भर की
फिराक में
प्रेम जब इक छुअन से
सदियों लम्बी आस को
जिन्दा रखा करता है
प्रेम जब बांहों से ज्यादा
सज़दों में रहा करता है
प्रेम जो उस ऊंची शै में
महबूब को ही देखा करता है
वो प्रेम
अक्सर आत्मा की तासीरों में
बस जाया करता है
और इश्क के कायदों में
रूहानी कहलाया करता है ।