रुहानी कोई गीत सा
रुहानी कोई गीत सा
1 min
239
जो हर वक्त मेरे लबों पर रहे
तू रुहानी कोई गीत सा है।
कृष्ण प्रेम में जहर का प्याला
पी लिया
मीरा की उस प्रीत सा है।
जो जात-धर्म से परे थे
तू कबीर के दोहों की
रीत सा है।
रुह को जो रब से मिला दे
ढलते सूरज की कीर्ति सा है।
दूर ना होने दूँ एक पल भी
हजारों हार के बाद मिली
जीत सा है।
तन मन को चहका दे जो
तू जेठ की दोपहर में शीत सा है।
तू हर किसी के दिल की जाने
मेरे मालिक के सच्चे मीत सा है।
कलम जिसकी प्यार बांटे
यार तू 'ओमदीप' सा है।।