रोना मना है
रोना मना है
लड़के होने की कीमत चुकानी पड़ती है
रोना आने पर भी मुस्कुराहट दिखानी पड़ती है
बचपन में चोट लगने पर जब रोना आता था
लड़कियों की तरह टसुए ना बहा" उससे कहा जाता था
बहन से पिटकर जब वह रोने लगता था
कैसा मर्द है सुनकर उसे चुप होना पड़ता था
बहन की विदाई पर दिल ज़ार-ज़ार रोना चाहता था
पर पी लेता था आंसू क्योंकि भाई कमज़ोर दिखना नहीं चाहता था
मां बाप के मरने पर दहाड़े मारकर रोना चाहता था
पर रख लिया दिल पर पत्थर क्योंकि हंसी का पात्र बनना नहीं चाहता था
टूटता था जब कोई सपना, रोकर दिल हल्का करना चाहता था
पर "लड़के रोते नहीं" ये याद उसको दिलवाया जाता था
शायद ऐसा कह कर लड़कों को निडर और मज़बूत बनाया जाता था
हंसना, रोना तो जज़्बात हैं फिर क्यों उनके जज़्बातों को दबाया जाता है
"क्योंकि लड़के रोते नहीं" कह कह कर क्यों उनको पत्थर दिल बनाया जाता है।