ऋण
ऋण
उस मालिक ने ये दुनिया दी
कुदरत ने अनमोल नियामतें दीं
माता-पिता ने प्रेम और संस्कार दिये
सबने अपना सहयोग दिया
अब किस हक़ से और मैं मांगूँ
बस अपना फ़र्ज़ अदा करूँ
अपना ऋण चुका सकूं
इतनी शक्ति भर लूं मन में
उस मालिक ने ये दुनिया दी
कुदरत ने अनमोल नियामतें दीं
माता-पिता ने प्रेम और संस्कार दिये
सबने अपना सहयोग दिया
अब किस हक़ से और मैं मांगूँ
बस अपना फ़र्ज़ अदा करूँ
अपना ऋण चुका सकूं
इतनी शक्ति भर लूं मन में