रहनुमाई..
रहनुमाई..
जो कैफियत मेरी जुबां में है यारा,
वही उसकी बोली में जाहिर हुई है।
मैने कलमा पड़ा मस्जिद में,
दुआ मंदिर मे कुबूल हुई है।
मजहब जुदा हो,फकत लाज़मी है,
मुल्क एक सा है तुम्हारा, हमारा।
एक ही धरा के सनम,रहनुमा है,
उर्दू के जुबां में हिंदी ही बयां है।
मेरी कहानी या उसका फसाना,
सदियों से सारा जहां एक ही है।
मोहब्बत मे रूहे सभी एक सी हैं,
गालिब और जगजीत की गज़ल एक सी है।
पीर की मजार हो या हो शिवाला,
अजान और आरती का सार एक ही है।
आंसू और लहू का रंग एक ही है,
सजदे और नमन का फल एक ही है।
उसकी फकीरी में रईसी छिपी है,
मजार की चौखट पर बैठकर दुआ बांटता है।
नाहक ही फर्क किया ताउम्र
उसी ने आज मेरे वालिद को दवा दी है।