रहना है।
रहना है।
आदमी को दुनिया में रहना है, कमल की तरह,
जो खिलता है कीचड़ में, बिना किसी दोष के लिए।
दीन दुखियों की सेवा ऐसे कर, की कोई जान ना पाए,
जिस तरह अंबर बरसाता है जल, सूखी जमीन के लिए।
धन -दौलत को अगर खर्च करना है तो किस की तरह,
जिस तरह शाखा पर आए फल झुकते हैं सभी के लिए।
आदमी अपने इरादे का पक्का हो किस तरह से,
जिस तरह रुकावट है तकदीर, कुदरत का कानून के लिए।
दुनिया के रंजो ग़म इंसान किस कदर भूल बैठे,
जिस तरह वह शख्श करता है, खलल दूसरों के लिए।
आदमी जाए मुसीबत के मुकबिल किस तरह,
जिस तरह शेर करता है सीने के बल अपने शिकार के लिए।