रेखाएँ बोलती हैं
रेखाएँ बोलती हैं
रेखाएँ बोलती हैं
न जाने कितने
छुपे राज खोलती हैं,
है कोई कहाँ
समझ पाता है,
रेखाओं की भाषा
जो समझ पाता है,
वही लगाता है
रेखाओं से आशा,
बाकी लोग मेहनत
को ही कर्म जानते हैं
और अपना मानते हैं,
और बढ़ते हैं
कर्म की राह पर,
और रेखाओं की
भाषा को बदलकर,
कभी न मिटने वाला
इतिहास लिखकर,
अमर हो जाते हैं;
बाकी लोग सोचते ही
रह जाते हैं।