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Madhu Gupta "अपराजिता"

Inspirational

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Madhu Gupta "अपराजिता"

Inspirational

रौशनी

रौशनी

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अंधेरों से जूझ कर, रोशनी सारे जहाँ में बिख़र ही जाती है l

रोके अंधेरा लाख चाहे , मग़र वह निख़र कर आ ही जाती है ll


यही पहचान है उसकी, यही अंदाज़ है उसका l

किरणों के साथ- साथ वो नज़र पर छा ही जाती है ll


सताएं लाख उसको क्यों ना, अंधेरों का ये सौदागर l

बेखौफ़ होकर मग़र ये,रंग ज़माने को दिखला ही जाती है ll


ना हटती है ये पीछे.....,ना अंधेरो को आगे बढ़ने देती है l

कशिश आपनी ये दिखला कर, अंधेरे में रोशनी का कमल खिला ही जाती हैll


सुबह से शाम तक यह हमको बड़ी अदा से समझाती है l

हर चीज़ बस में हो अपने, अगर जो दिलों में ठान ली जाती हैं ll 


ना घने काले ही बादलों से, ना किसी वीराने से ही वो डरती है l

उंजलियों में भरकर समुंदर रौशनी का ,सामने खड़ी आकर हमारे हो ही जाती है ll


करो स्वागत इसका सभी अपने तरीकों से l

यह जीने का सलीका, हमें रोज़ सिखला कर जाती है ll



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