रौशनी
रौशनी
अंधेरों से जूझ कर, रोशनी सारे जहाँ में बिख़र ही जाती है l
रोके अंधेरा लाख चाहे , मग़र वह निख़र कर आ ही जाती है ll
यही पहचान है उसकी, यही अंदाज़ है उसका l
किरणों के साथ- साथ वो नज़र पर छा ही जाती है ll
सताएं लाख उसको क्यों ना, अंधेरों का ये सौदागर l
बेखौफ़ होकर मग़र ये,रंग ज़माने को दिखला ही जाती है ll
ना हटती है ये पीछे.....,ना अंधेरो को आगे बढ़ने देती है l
कशिश आपनी ये दिखला कर, अंधेरे में रोशनी का कमल खिला ही जाती हैll
सुबह से शाम तक यह हमको बड़ी अदा से समझाती है l
हर चीज़ बस में हो अपने, अगर जो दिलों में ठान ली जाती हैं ll
ना घने काले ही बादलों से, ना किसी वीराने से ही वो डरती है l
उंजलियों में भरकर समुंदर रौशनी का ,सामने खड़ी आकर हमारे हो ही जाती है ll
करो स्वागत इसका सभी अपने तरीकों से l
यह जीने का सलीका, हमें रोज़ सिखला कर जाती है ll